Atma-Bodha Lesson # 52 :
OCT 20, 2021
Description Community
About

आत्म-बोध के 52nd श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें जीवन्मुक्त के कुछ और लक्षण देते हैं। इस श्लोक की दो लाइन में वे दो महत्वपूर्ण लक्षण देते हैं। ये दोनों लक्षण ऐसे हैं जिनमे अनेकानेक वेदान्त जिज्ञासु फसें रहते हैं और इनसे ऊपर नहीं उठ पाते हैं, और इनके चलते अपने गुरु से प्राप्त दिव्य ज्ञान को चौपट कर देते हैं। अर्थात ये दो ऐसे महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं की हम ज्ञान प्राप्ति के बाद भी संसारी बने रहते हैं। पहली लाइन में आचार्य कहते हैं तत्त्व-ज्ञानी उपाधि में रहते हुए भी उपाधि के समस्त धर्म से अछूते रहते हैं - जैसे आकाश। दूसरी लाइन में कहते हैं की वे सर्ववित हैं लेकिन ज्ञान के प्रदर्शन की कोई प्रेरणा नहीं होती है। उनके लिए ज्ञान मूल रूप से उनकी मुक्ति का साधन था - न की अज्ञानी लोगों से ज्ञानी का प्रमाण पात्र की प्राप्ति का माध्यम। वे तो एक शीतल पवन जैसे होते हैं जो की असंग और अलिप्त रहते हुए प्रवाहित होती रहती है। 


इस पाठ के प्रश्न : 



  • १. शरीर में रहते हुए क्या ब्रह्मज्ञानी को बीमारी / बुढ़ापा प्रभावित करता है की नहीं ? 

  • २. भूख, प्यास, सुख, दुःख आदि से ज्ञानी लोग कैसे अप्रभावित रहते हैं ? 

  • ३. अगर कोई ज्ञानी है तो क्या उनके अंदर दूसरों को ज्ञान देने की प्रेरणा नहीं होती है ?


Send your answers to : vmol.courses-at-gmail-dot-com

Comments