आत्म-बोध के 67th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी महाराज हमें आत्म-ज्ञान के उदय को एक सूर्य उदय से तुलना करते हैं। जैसे जब सूर्योदय होता है, तब दुनिया में विराजमान अन्धकार तत्क्षण दूर हो जाता है, और इसके फल-स्वरुप अन्धकार के समस्त कार्य भी दूर हो जाते हैं। उसी प्रकार अपने यथार्थ से अनभिज्ञ हम सब अनेकानेक कल्पनाओं में पड़े हुए हैं। हम लोगों का पूरा संसार केवल कल्पनाओं और धारणाओं पर आधारित होता है। हम लोगों ने न अपने बारे में और न ही दुनियां के बारे में कभी विचार किया है, बस अविचारपूर्वक धारणाएँ उत्पन्न कर रही हैं। अज्ञान की निवृत्ति के साथ ही सब कल्पनाएँ समाप्त होने लगाती हैं और हम अपने आप को सर्वव्यापी और सर्व-धारी ब्रह्म जान लेते हैं।
इस पाठ के प्रश्न :
- १. आत्मा-ज्ञान की तुलना सूर्योदय से क्यों की गयी है ?
- २. आत्म -ज्ञान से मूल रूप से क्या होता है ?
- ३. अज्ञान काल में और तत्त्व-ज्ञान के बाद हमारे अपने बारे में कैसी धारणा और निश्चय होता है ?
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