एक दौर था जब भारत का एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों से आज़ादी पाना था। एक विदेशी हुकूमत के अधीन खुद को ग़ुलाम मानना भारत की जनता को गवारा ना था। आज़ादी एक व्यक्ति विशेष के कारण नहीं मिली बल्कि इस यज्ञ में कई आहुतियाँ पड़ी। पंडित राम प्रसाद ‘बिसमिल’ उनमें से एक ऐसे महान कवि, शायर और क्रांतिकारी थे जो आज़ादी के लिए फाँसी झूल गए। उनके द्वारा गाया गया गीत - ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ आज भी सुनने मात्र से सिहरन पैदा करता है। आज़ादी के मायने कई प्रकार से बदल गए हैं। अब शत्रु और व्याधियाँ स्पष्ट ना हो कर जटिल हैं। कुछ इसी प्रकार की कुण्ठा मानसिक और वैचारिक तौर पर भी मौजूद हैं जिनका निवारण ज़रूरी है।
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