इंसान का प्रकृति के साथ ये छीना झपटी उसको ही नुक़सान पहुँचा रही है और पहुँचाएगी। वो उस डाल को काट रहा है जिसमें स्वयं बैठा है। विज्ञान में शोध और कामयाबी से उसने अपने आप को सुरक्षित कर लिया ऐसा उसका मानना है। उसने संसार पर विजय प्राप्त कर लिया ऐसा उसका दावा है। उसके हिस्से का निवाला कोई और छीन ना ले उसने उसके लिए खेतों में बाड़ लगा दी। उसने ज़ाल बिछा दिए। उसने अपनी भूख़ के लिए अन्य जीवों का निवाला भी बड़ी मुस्तैदी के साथ छीन लिया। केरल में एक गर्भवती हथिनी के साथ जो मानवी कुकृत्य हुआ वह उस कड़ी का एक हिस्सा है। ब्रह्मा ने सृष्टि बनाते समय ये कल्पना शायद नहीं करी। संवेदना का साक्षरता से कोई वास्ता नहीं है यह वो आंतरिक मूल्य है जो इंसान अपने परिवेश में सीखता है।
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