वक़्त तो बिना लेबल के चलता रहता है। बदलता अगर कुछ है तो वह है रवैया। ज़रूरत इस बात की है की रवैया सटीक हो। और ये सटीकता आत्ममंथन से आती है। घर से बाहर और भ्रम की इस दुनिया में प्रभावित होने के लिए बहुत कुछ है। जितनी सरलता और सुगमता से वह प्रभाव उपलब्ध होगा आप उसमें बहते चले जाएँगे। हर्ष भी कुछ इसी प्रभाव की गिरफ्त में आ गया। अस्वीकरण: सभी पात्रों का नाम काल्पनिक है और किसी भी प्रकार की समानता मात्र एक संयोग होगा।
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