जिस संस्कृति में भाषा के साथ लिपि होती है उस संस्कृति का सुदृढ रहना चिरकाल तक संभव है। और जिस संस्कृति में भाषा के साथ लिपि नहीं है वहां लोगों का उस परंपरा से लगाव रहना लंबे समय तक रहना मेरे हिसाब से एक चुनौती है। रचनात्मक कार्यों के लिए एक भाषा लिखित रूप होना आवश्यक है। ये उस कड़ी का हिस्सा है जो एक दौर से दूसरे दौर तक जाती है। जब इंसान का वास्ता काम होता जाता है तब वह हर मूल्यों को ताक पर रखता जाता है और उसके भीतर वो संजीदगी शनै-शनै समाप्त होती जाती है। मेरे हिसाब से वर्तमान में अशांति का एक कारण यह भी है या अन्य शब्दों में कहें तो मूल्यों का पतन जिसकी एक वजह भाषा और लिपि का अभाव है।
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