प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥ 19 ॥
हनुमानजी ने भगवान श्री रामचन्द्रजी की दी हुई अँगुठी को मुहँ में रख कर सीतामाता की खोज करने समुद्र पर छलांग लगाई और उस पार लंका में पहुँच गये इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। गोस्वामी तुलसीदासजी का अभिप्राय यह है कि हमें हनुमानजी की तरह सुक्ष्म बनकर भीतर पडी हुई सुप्त शक्तियों को जागृत करना चाहिए।
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