वो फ़ौजी लड़की
NOV 14, 2020
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यह बात है उत्तराखंड पहाड़ के एक छोटे से कसबे की वहां निशु नाम की लड़की रहती थी उनका गाँव शहर से दूर था वहां पहुँचने के लिए पैदल ही जाना पड़ता था गाँव लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर था
निशु को कॉलेज के लिए पैदल ही आना जाना पड़ता था उसका एक एक छोटा भाई था जो अभी गाँव के ही स्कूल में पढता था
उसके के पिता किसी दुसरे राज्य में प्राइवेट नोकरी किया करते थे पिता जो भेजते थे वो दादी के दवाइयों के खर्चे में ही चला जाता था
घर का गुजरा कठिनाई से होता था निशु की माँ पढ़ी लिखी नहीं थी दिन भर खेतों में काम करने और अपने पालतू जानवरों के देख भाल में लगी रहती थी
कॉलेज जाते हुए उसको बाजार की दुकानों तक सब्जी और दूध भी बेचने के लिए साथ लेकर जाना पड़ता था जिससे घर का खर्चा चलता था
निशु का सपना फोज में भारती होने का था वह रोज फोज में भारती होने से सम्बंधित ख़बरें पड़ती थी यदि गाँव में भी कभी कोई फोज से छुट्टी आता तो वह उनसे मिलने जरूर चली जाती थी
वह चाहती थी की वह भी देश की सेवा करे परन्तु एक ऑफिसर बन कर वह बच्चपन से पढने में औसत स्तर की छात्रा रही उसका भी कारण परिवार की आर्थिक स्तिथि ही थी
एक दिन जब निशु कॉलेज से घर पहुंची तो उसने देखा उसके घर पर बहुत लोग इकठ्ठा थे उसे किसी अनहोनी का डर सताने लगा वह भाग भाग कर घर की तरफ जाने लगी
उसे लगा कहीं दादी को तो कुछ नहीं हो गया या माँ को क्योंकि की उनके गाँव के पास खेतों में जंगली जानवर भी आते रहते थे निशु हफ्तें हाँफते घर पहुंची देखा माँ और दादी दोनों ठीक हैं पर उसके पिता जमीन पर मृत पड़े हैं शायद वे भी बीमार थे पर घर की स्तिथि को देखते हुए उन्होने कभी उसका जिक्र परिवार से नहीं किया था
निशु पर अब पूरे परिवार को सँभालने की जिम्मेदारी आ गयी निशु का कॉलेज का अंतिम वर्ष था परन्तु अब तो कॉलेज जाना भी बहुत मुस्किल था निशु के सरे सपने हवा हो गए
वह अपने जीवन में इतना निरिश और दुखी कभी नहीं हुई थी जितना वह आज थी वह सोच रही थी उसके साथ एसा क्यूँ हो रहा है वह तो हमेसा पूजा पाठ करती है हमेसा ईमानदारी से सभी कम करती है कभी किसी को बुरा नहीं बोलती
फिर उसके परिवार को ही क्यूँ इतनी परेसनियों का सामना करना पढ़ रहा है
निशु का कॉलेज जाना लगभग बंद ही हो गया था क्यूंकि अब उसे अपने माँ के साथ खेतों में काम करना पढ़ रह था उन्होंने कुछ और खेतों में सब्जियां उगानी सुरु कर दी था और निशु को ही उन्हें बाजार बेचने भी जाना पड़ता था

एक दिन निशु जब सब्जियां बेचने के लिए बाजार पहुंची तो कॉलेज के NCC के ड्रिल इंस्ट्रक्टर ने निशु को देख लिए वे उसके पास पहुंचे और पुछा की वह यह सब क्या कर रही है और कॉलेज क्यूँ नहीं आ रही है उसका NCC C certificate का एग्जाम भी होना था और जल्द ही फाइनल एग्जाम भी होने वाले थे
निशु से बहुत दिनों बाद बात किसी ने कॉलेज और उसके फोज में भारती होने के सपने के बारे में बात की और उसके प्रति सहानुभूति दिखाई थी निशु वहीँ फूट फूट के रोने लगी
निशु जब घर लोटी तो और भी अधि उदास और निराशा से घिरी हुई थी उसे लग रहा था की उसका परिवार और उसका जीवन अब हमेसा इसे ही दुःख दर्द में बीतेगा
उस दिन बहुत बारिश भी हो रही थी उनका घर मट्टी और पत्थरों का से बना हुवा था अधिक बारिश के कारण एक कमरे की दिवार गिर गयी और निशु की दादी उसके नीचे दब गयी
पूरा परिवार एक बार फिर बहुत तिलमिला गया गाँव के लोगों की मदद से दादी के शव को बहार निकला जा सका और उनका अंतिम संस्कार किया गया
उस रात निशु अपनी परेसनियों से बहुत व्यथित थी और अपने कमरे में बैठे बैठ ही सो गयी
सोते हुए निशु को एसा लगा जैसे किसी ने उससे कहा की बेटी तेरी परेसनियों का समय अब ख़त्म हो गाया है तू थोड़ी हिम्मत कर और अब सारा जहाँ तेरा होगा
उसे लगा जसे उसकी दादी लोट आई है और उन्होंने ही उससे ये सब कहा
निशु की आँख खुली तू उसने देखा कमरे में अँधेरा था और कमरे की खिड़की से चाँद की रौशनी उसके और उसकी किताबों पर पड रही थी उसने उठकर समय देखा सुभ के 4 बज रहे थे
उस सुबह निशु ने फिर से एक बार अपनी सारी हिम्मत इकट्ठा की और अपने सपने को सच करने में लग गयी क्योंकि उसको विश्वास हो गया था की वो शब्द उसके दादी के ही थे
वह कॉलेज गयी और वहां सभी ने उसको हर प्रकार से मदद की क्यूंकि ड्रिल इंस्ट्रक्टर ने सभी को उसकी स्तिथि के बारे में बताया था
निशु ने NCC C certificate के साथ साथ अपनी ग्रेजुएशन पूरी ही की थी की उसे SSB से dirrect एंट्री के लिए कॉल अगया
निशु ने अपनेआत्म विश्वास के बूते SSB क्लियर किया और आज सिक्किम
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