उपदेश सार के १०वें प्रवचन में पूज्य गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द जी महाराज बताते हैं की अपने मन पर विचार करने के लिए एक सरल उपाय होता है। वे बताते हैं की मन वृत्तियों का प्रवाह होता है। हमारे मन में प्रत्येक वृत्ति किसी न किसी विषय की तरफ हमारा ध्यान मोड़ती है। अतः मोटे तौर से इन सब वृत्तियों को 'इदं वृत्ति" कहा जाता है। यद्यपि ज्यादातर वृत्तियाँ इदं वरीतियाँ हैं लेकिन सब नहीं। सबके मन में एक और विलक्षण वृत्ति होती है, और वो है "अहम् वृत्ति"। इस अहम् वृत्ति के ऊपर ही समस्त इदं वृत्तियाँ आश्रित होती हैं। इसीलिए इस "अहम् वृत्ति" को विद्वान लोग वास्तविक मन कहते हैं। अब मन के ऊपर विचार आसान हो गया, अब हमें केवल एक वृत्ति के ऊपर ही विचार करना है। अहम् वृत्ति कहते हैं अपने मन में अपने आप की धारणा को। जब इसके ऊपर विचार होता है तब एक आश्चर्यजनक चीज़ होती है - यह अहम् वृत्ति गिर जाती है, अर्थात इसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व दिखाई नहीं देता है। जिसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व हो वो ही टिकती है। जिस जगह अहम् वृत्ति थी वहां ही एक परम पूर्ण सत्ता शेष रह जाती है। वो ही वस्तुतः हम होते हैं।