उपदेश सार पर अपने दूसरे प्रवचन में उपदेश सार के पहले ष्लोक पर प्रकाश डालते हुए पूज्य स्वामी आत्मानन्द जी महाराज ने बताया कि भगवान शंकर अपने प्रिय कर्मनिष्ठ एवं तपस्वी भक्तों को एक मोक्षदायी उपदेश देने के लिए भूमिका बनाते हैं और पहले श्लोक में कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं। पहली चीज़ वे कहते हैं की :
१. कर्म सदैव अपने स्पष्ट संकल्प से प्रारम्भ करना होता है, लेकिन कर्म-फल सदैव ईश्वर की इच्छा से प्राप्त होता है।
२. हम कर्म से कुछ भी प्राप्त कर ले, वे सब फल यद्यपि उपयोगी होते हैं लेकिन वे सदैव क्षणिक होते हैं, लेकिन हम सब किसी स्थायी सुख को ढूंढते हैं - उसे शिवजी 'परम' के नाम से संकेत करते हैं।
३. कर्म-फल क्षणिक होते हैं और साथ-साथ जड़ भी होते हैं।