उपदेश सार के पांचवे प्रवचन में ग्रन्थ के चौथे श्लोक पर प्रकाश डालते हुए पूज्य स्वामी जी ने बताया कि इस श्लोक से भगवान् हमें ईश्वर भक्ति की प्राप्ति के साधन बता रहे हैं। हमारी तीन धरातल की चर्चा करते हुए वे कहते हैं की एक हमारा शारीरिक धरातल होता है, एक इन्द्रिय, और विशेष रूप से वाणी का और तीसरा अत्यंत महत्वपूर्ण हमारे मन का धरातल होता है। हमें अपनी "आसक्ति से भक्ति" की प्राप्ति की यात्रा के लिए तीनों धरातल का सदुपयोग करना चाहिए। वे हमारे शरीर, वाणी और मन की तीन सर्वोत्कृष्ट साधनाएं बताते हैं - जो हैं, पूजा, जप और ध्यान। इनके अभ्यास से हमारे मन में निश्चित रूप से ईश्वर की भक्ति की प्राप्ति हो जाती है।